
कांग्रेस में बदलाव धीमा क्यों, अब हटेगी सुस्ती, देहात में 3 मंडल अध्यक्ष बदलने तय, कह भी दिया, मगर सुस्ती
- नये नाम तय हो गए, मगर नियुक्ति नहीं हुई
- निष्क्रिय पदाधिकारी चिन्हित, मगर हटे नहीं अब तक
- शहर अध्यक्ष का मामला भी ढिलाई में
- निर्णयों में देरी के ग्रहण से उबर नहीं रही कांग्रेस
अभिषेक आचार्य
RNE Political Desk.
कांग्रेस पिछले एक दशक से चुनाव हार रही है। जिसका मूल कारण नेताओं ने तलाशा तो यह सामने आया कि संगठन कमजोर है। इस बात को खड़गे व राहुल गांधी ने पहचाना, फिर इस वर्ष को संगठन को समर्पित कर काम शुरू किया।
कांग्रेस नेताओं को जो दूसरी कमी पता चली, वो थी निर्णय करने में देरी की। निर्णय कर लिया जाता है मगर भाजपा की तरह त्वरित गति से उसे लागू नहीं किया जाता। ये देरी संगठन का बड़ा नुकसान कर देती है। जो इस समय मे भी चल रही है। राहुल या खड़गे क्या करे, राज्यों के क्षत्रप देरी के लिए जिम्मेदार है।
बात बीकानेर की ये:
बीकानेर लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने हारा। फिर विधानसभा चुनाव में 7 में से 6 सीटें गंवानी पड़ी। तब से ही संगठन में बदलाव की बयार चली। राहुल व खड़गे ने एक नीति बना पीसीसी को निर्देश दिया कि निष्क्रिय पदाधिकारियों को हटाएं और नयों को अवसर दें। पूरे राज्य के लिए यही नीति बनाई गई।
बीकानेर में भी निष्क्रिय पदाधिकारियों की शहर व देहात की सूचियां बनी। जिन्हें पीसीसी को दिया गया। उन पदाधिकारियों की सूची भी बनी जिनका भाजपा को लेकर रुख थोड़ा सॉफ्ट है। जो भाजपा पर हमलावर नहीं रहते। इन सूचियों को पीसीसी ने मंथन के बाद फाइनल किया, वो भी प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा की देखरेख में। आलाकमान से चर्चा भी हो गई, मगर अब तक कुछ नहीं हुआ।
देहात कांग्रेस की बात पहले:
देहात कांग्रेस में तीन मंडल अध्यक्ष को हटाने का निर्णय हुआ। उनको इसकी सूचना भी दे दी गई। उनकी जगह किनको बनाया जायेगा, ये नाम भी पीसीसी से तय हो गए। मगर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ।
देहात अध्यक्ष, पार्टी प्रभारी ने मिलकर देहात के निष्क्रिय पदाधिकारियों की सूची बनाकर प्रदेश कमेटी को दे दी, उन पर भी सहमति बन गई। मगर अब तक एक भी पदाधिकारी को नहीं हटाया गया है। सच ये है।
राहुल गांधी ने भितरघात वालों के लिए एक शब्द कहा ‘ स्लीपर सेल ‘। देहात में इनकी भी सूची बनी। क्योंकि इनके कारण ही सीटें गंवानी पड़ी। उनकी भी रिपोर्ट उम्मीदवारों, संगठन ने तैयार की जो पीसीसी के पास अरसे से है, मगर कार्यवाही नहीं हो पाई।
शहर कांग्रेस की भी है यही स्थिति:
शहर कांग्रेस की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं है। अध्यक्ष यशपाल गहलोत पार्टी के निर्धारित समय को पूरा कर चुके है। वे तो प्रदेश नेतृत्त्व को नया अध्यक्ष बनाने का कह भी चुके है, मगर निर्णय नहीं हुआ। गहलोत इसके बावजूद भी संगठन को गतिशील रखे हुए है।
शहर कांग्रेस में भी निष्क्रिय पदाधिकारियों की संख्या कम नहीं, स्लीपर सेल की संख्या भी कम नहीं। इन दोनों श्रेणी में आने वालों के नाम संगठन, नेताओं ने पीसीसी को कब के दे दिए। मगर कोई कार्यवाही अब तक नहीं हुई।
नुकसान होगा कांग्रेस को:
इन मामलों में यदि पीसीसी ने निर्णय में देरी की तो उसे पंचायत व स्थानीय निकाय के आने वाले चुनावों में बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। ये बात निष्ठावान कांग्रेसी दबी जुबान में कह भी रहे है। ये सत्य भी है, पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
गुटबाजी बड़ी समस्या:
शहर हो या देहात कांग्रेस, गुटबाजी से ग्रसित है। यूं तो प्रदेश की कांग्रेस ही गुटबाजी का शिकार है। मगर बीकानेर में ये कुछ ज्यादा ही है। देहात में तो वर्चस्व की लड़ाई नेताओं में चरम पर है। उसके बीच से बदलाव की हवा को चलाना पड़ेगा। यदि बदलाव नहीं हुआ तो पार्टी को नुकसान से कोई नहीं रोक सकता।